हुड्डा ने लंच के बहाने दिखाई ताकत, पहुंचे कांग्रेस हाईकमान से जुड़े नेता

Edited By Punjab Kesari, Updated: 14 Jan, 2018 01:46 PM

hooda looks forward to lunch  congress leader reach

हरियाणा कांग्रेस में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा तथा कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष अशोक तंवर के बीच चल रही वर्चस्व की जंग में हुड्डा ने आज लंच के बहाने अपनी ताकत का प्रदर्शन किया। एक-दूसरे से भारी दिखने की होड़ में दोनों के समानांतर कार्यक्रम...

चंडीगढ़(धरणी):हरियाणा कांग्रेस में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा तथा कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष अशोक तंवर के बीच चल रही वर्चस्व की जंग में हुड्डा ने आज लंच के बहाने अपनी ताकत का प्रदर्शन किया। एक-दूसरे से भारी दिखने की होड़ में दोनों के समानांतर कार्यक्रम चलते आ रहे हैं। तंवर ने जहां पिछले दिनों कहा था मंथन शिविर में कांग्रेस हाईकमान के वरिष्ठ नेताओं को बुलाएंगे तो वहीं हुड्डा ने आज दिल्ली में अपने निवास स्थान पर दिए गए लंच में कांग्रेस हाईकमान के वरिष्ठ नेताओं को बुलाकर कांग्रेस के भीतर यह संदेश देने का प्रयास किया कि पार्टी हाईकमान में उनकी पैठ बरकरार है। कांग्रेस हाईकमान से जुड़े नेताओं में अहमद पटेल, जर्नादन द्विवेदी, मोती लाल वोरा, कपिल सिब्बल, अश्वनी कुमार तथा सलमान खुर्शीद शामिल रहे।

बता दें कि कांग्रेस के 17 विधायक हैं जिसमें हुड्डा सहित 13 विधायक एक साथ कदम ताल करते रहे हैं जबकि कांग्रेस विधायक दल की नेता किरण चौधरी तंवर खेमे के साथ जुड़ी हैं तो वहीं हजकां छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए कुलदीप तथा रेणुका बिश्नोई सभी खेमों से अलग-थलग दिखने का प्रयास करते हैं। लंच में किरण चौधरी को छोड़ सभी विधायकों का शामिल होना और कुलदीप तथा रेणुका बिश्नोई की उपस्थिति भविष्य की राजनीति में कुछ नई खिचड़ी पकने के संकेत दे रही है। चर्चाओं की मानें तो लंच में आमंत्रित राज्यसभा सांसद कु. शैलजा तथा कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सिंह सुर्जेवाला को भी किया गया था, लेकिन दोनों बाहर होने के चलते लंच पर नहीं पहुंचे। 

हालांकि सुर्जेवाला का जलवा इन दिनों अलग से है, ऐसे में हो सकता है कि उनकी न आने की वजह कुछ और भी रही हो। ऐसा ही कु. शैलजा के लिए भी कहा जा सकता है, हालांकि पहले हुड्डा तथा शैलजा के संबंध ठीक नहीं थे लेकिन बाद में सुना गया कि दोनों की बीच विवाद खत्म हो गया। लंच की नेताओं की उपस्थिति को देखकर तो यही कहा जा सकता है कि राजनीति में लंबे समय तक कोई दुश्मन या दोस्त नहीं, कब लड़ते हुए एक हो जाएं, कहना मुनासिब नहीं।

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