सवर्ण जाति के नेताओं को नहीं जोड़ पा रहे कांग्रेसी दिग्गज

Edited By Deepak Paul, Updated: 11 Mar, 2018 10:17 AM

congress veterans unable to add senior caste leaders

प्रदेश की राजनीति में जातिगत समीकरण हर विधानसभा चुनाव में बड़ी भूमिका अदा करते हैं। जो पार्टी सभी जातियों को साधने में कामयाब....

अम्बाला(ब्यूरो): प्रदेश की राजनीति में जातिगत समीकरण हर विधानसभा चुनाव में बड़ी भूमिका अदा करते हैं। जो पार्टी सभी जातियों को साधने में कामयाब हो जाती है उसे सरकार बनाने में सफलता मिल जाती है। अब हरियाणा की राजनीति जाट-बनाम गैर जाट की ओर बढ़ चुकी है। इन परिस्थितियों के बावजूद कांग्रेस के अलग-अलग गुटों के नेता सवर्ण जातियों के वरिष्ठ नेताओं को अपने साथ नहीं जोड़ पा रहे हैं। कांग्रेस के एक गुट का नेतृत्व पूर्व सी.एम. भूपेंद्र सिंह हुड्डा कर रहे हैं। पहले उनके साथ ब्राह्मण नेता के रूप में अंबाला के पूर्व विधायक विनोद शर्मा जुड़े हुए थे। विनोद शर्मा की पूरे प्रदेश में ब्राह्मणों पर मजबूत पकड़ रही है। 

गत विधानसभा चुनावों से पहले विनोद शर्मा कांग्रेस को अलविदा कर गए थे। अब हुड्डा के साथ ब्राह्मण नेता के रूप में कुलदीप शर्मा ही हैं जिनकी विनोद शर्मा के मुकाबले ब्राह्मणों पर ज्यादा पकड़ नहीं है। अगर हुड्डा विनोद शर्मा की ‘घर वापसी’ कराने में कामयाब हो जाते हैं तो इससे उन्हें व कांग्रेस दोनों को फायदा हो सकता है। वैश्य नेता के रूप में अशोक बुवानीवाला ने खुद को अच्छी तरह स्थापित किया हुआ है। अगर उन्हें पार्टी में तवज्जो मिलती है तो इसका कांग्रेस को फायदा मिल सकता है। हुड्डा की कांग्रेस में मजबूत स्थिति है। वह पूरे प्रदेश में भाजपा सरकार के खिलाफ मुहिम छेड़े हुए हैं। सी.बी.आई. की तलवार उन पर लटकी हुई है। उनके विरोधियों को शायद इस बात से खुशी हो रही होगी लेकिन हुड्डा जरा भी चिंतित दिखाई नहीं दे रहे। 

कांग्रेस में एक और मजबूत खेमा रणदीप सुर्जेवाला के प्रदेश में अचानक सक्रिय होने से पैदा हो गया है। उनकी पार्टी हाईकमान पर मजबूत पकड़ है। उन्होंने रैलियों का जो सिलसिला तेज किया है उससे आने वाले समय में कांग्रेस को फायदा हो सकता है। मुस्लिम वोटों को अपने पक्ष में करने के लिए सुर्जेवाला ने हथीन में शनिवार को बड़ी रैली करके अपने विरोधियों को ताकत का अहसास करवाने का काम किया है। जब तक ब्राह्मण, राजपूत और वैश्य आदि नेताओं की बात है, उनके साथ भी इन जातियों के कोई कद्दावर नेता नहीं हैं। अगर वे सवर्ण नेताओं को साथ जोड़ते हैं तो उससे कांग्रेस की स्थिति मजबूत होगी

किरण चौधरी और अशोक तंवर भी अपने-अपने गुट बनाकर चल रहे हैं। अशोक तंवर गैर जाट नेता हैं। पार्टी अध्यक्ष का कार्यभार और आगे बढऩे के बाद वे पूरे जोश के साथ प्रदेश भर में दौरे कर रहे हैं। किरण चौधरी अपनी बेटी श्रुति को दूसरी बार लोकसभा में भेजने के लिए यादव बाहुल्य इलाकों में सक्रिय हो गई हैं। उन्होंने भी हाल ही में अहीरों के गढ़ महेंद्रगढ़ जिले के दौरे तेज कर दिए हैं। वह नांगल चौधरी हलके से कांग्रेस की टिकट के दावेदार अभिमन्यु को अपने साथ जोड़ चुकी हैं लेकिन उनके और तंवर के साथ भी कोई बड़े सवर्ण नेता नहीं हैं। 

वोट डिवाइडेशन भाजपा के लिए फायदे का सौदा 
जाट और गैर जाट की राजनीति के चलते अगर कांग्रेसी जाट नेता गैर जाट नेताओं को साथ नहीं जोड़ पाते हैं तो इसका सीधा फायदा भाजपा को मिल सकता है। भाजपा की सवर्ण जातियों में मजबूत पैठ मानी जाती है। पार्टी के ब्राह्मण, बणिया और राजपूत नेताओं की कमी नहीं है। इनैलो की नजर भी इन जातियों के वोट बैंक पर है।  जाट आरक्षण आंदोलन के बाद बने समीकरण से भाजपा को आने वाले समय में नुक्सान हो सकता है। हालांकि सभी प्रमुख राजनीतिक दल सभी बिरादरियों को साथ लेकर चलने का दावा करते हैं परंतु अंदरखाने उनकी रणनीति वोटों के डिवाइडेशन पर टिकी रहती है। आने वाले समय में देखना यह होगा कि कौन किसके किले में सेंध लगाने में कामयाब होगा। 
 

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