यारों के यार थे शहीद मेजर दहिया, जानिए उनके जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें(Pics)

Edited By Updated: 16 Feb, 2017 01:34 PM

certain things about shaheed major satish dahiya

जम्मू कश्मीर के हंदवाड़ा में आतंकियों से लोहा लेते हुए हरियाणा का एक और वीर सपूत मेजर सतीश दहिया देश पर कुर्बान हो गए। शहीद मेजर सतीश दहिया का

महेन्द्रगढ़:जम्मू कश्मीर के हंदवाड़ा में आतंकियों से लोहा लेते हुए हरियाणा का एक और वीर सपूत मेजर सतीश दहिया देश पर कुर्बान हो गए। शहीद मेजर सतीश दहिया का पार्थिव शरीर बुधवार शाम नारनौल में स्थित उनके पैतृक गांव बनिहाड़ी पहुंचा जहां राजकीय सम्मान के साथ शहीद का अंतिम संस्कार किया गया। शहीद मेजर का पार्थिव शरीर हेलिकॉप्टर से उनके गांव लाया गया जहां हजारों लोगों ने उन्हें नम आंखों से विदाई दी। दरअसल जम्मू कश्मीर के हंदवाड़ा में मंगलवार शाम को सुरक्षा बलों व आतंकियों के बीच हुई मुठभेड़ में शहीद हुए मेजर सतीश दहिया महेन्द्रगढ़ जिले के गांव बनिहाड़ी गांव के रहने वाले थे। शहीद मेजर सतीश दहिया में बहादुरी के गुण मानो बचपन से ही कूट-कूटकर भरे थे। परिजनों ने बताया कि सतीश दहिया में बचपन से ही सेना में भर्ती होकर देश की सेवा करने का जज्बा था। सन् 2008 में वे लैफ्टिनैंट के रूप में सेना में भर्ती हुए। जम्मू कश्मीर में तैनाती हुई। इसके कुछ दिन बाद ही एक ऑप्रेशन में दहिया ने आतंकवादियों के छक्के छुड़ा दिए थे। मेजर दहिया ने इस ऑप्रेशन में कई आतंकवादियों को ढेर कर दिया था। इस पर सेना ने उन्हें 2009 में बहादुरी पुरस्कार से सम्मानित किया था। उनकी बहादुरी को देखते हुए ही सन 2015 में उन्हें मेजर पद पर पदोन्नत किया गया था।

 

यारों के यार थे शहीद मेजर दहिया
मेजर सतीश दहिया की मिलनसारिता और यारों के यार होने के किस्से उनके दोस्तों व परिचितों में खासी चर्चा का विषय बने रहे। दोस्तों ने बताया कि वे काफी मिलनसार थे और दोस्तों के दुख-सुख में हमेशा भाई की तरह खड़े मिलते थे। कालेज समय के दोस्त मामचंद यादव ने ऐसे ही एक वाक्य की चर्चा करते हुए बताया कि जनवरी माह में उसके बेटे हर्ष को ब्रेन की बीमारी के चलते जयपुर के दुर्लभजी अस्पताल में भर्ती करवाया था। इसका पता सतीश दहिया को चल गया था। जब जनवरी में छुट्टी में आए तो सीधा बेटे का हाल-चाल जानने के लिए जयपुर पहुंचे और इसके बाद अपने घर बनिहाड़ी। मामचंद ने बताया कि 2 दिन पहले भी बेटे का हाल जानने के लिए दहिया का फोन आया था। उन्होंने बेटे का पूरा ख्याल रखने और कोई भी परेशानी होने पर सीधा फोन लगाने की बात कही थी। कुछ इसी तरह के किस्से बचपन के कई अन्य दोस्तों ने भी बताए।

 

कूट-कूटकर भरी थी देशभक्ति
मेजर सतीश दहिया में बचपन से ही कुछ बन कर गुजरने की चाहत थी। उनमें देशभक्ति की भावना कूट-कूटकर भरी थी। वह देर रात तक जागकर पढ़ाई करते थे। उन्हें ज्यादा हंसी मजाक बिल्कुल पसंद नहीं थी। उनका विषय मानो एक ही था देश और उसकी भक्ति से जुड़ी बातें। यह कहना है शहीद मेजर सतीश दहिया के कालेज के समय से दोस्त मामचंद यादव व प्रदीप सामोता का। मामचंद व प्रदीप दोनों राजस्थान विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान से ही मेजर दहिया के गहरे दोस्त हैं। मामचंद राजस्थान के बहरोड़ तथा प्रदीप सीकर का रहने वाले हैं। दोनों मेजर दहिया के शहीद होने का समाचार मिलने के बाद बुधवार सुबह बनिहाड़ी गांव पहुंचे। 

उन्होंने बताया कि सतीश दहिया जब भी कभी दोस्तों के साथ बैठते तो सिर्फ और सिर्फ आर्मी में भर्ती होकर देश सेवा करने की बातें ही किया करते थे। उन्होंने बताया कि एक दिन देर रात करीब दो बजे सतीश बेचैन होकर सोते हुए जागे और बैठ गए। दोस्तों ने बेचैनी का कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि यार मैं देश की सेवा करने के लिए आर्मी में भर्ती होना चाह रहा हूं। इसी का सपना देखता हूं, इसलिए अचानक आंखें खुल जाती हैं। दोस्त प्रदीप सामोता ने कहा कि उसके 2 ही लक्ष्य थे पढ़ाई करना और देश सेवा की बातें करना। इसमें जो भी दोस्त यदा कदा बाधक बनता तो वह डांटने से भी नहीं चूकते थे।

 

पढ़ाई में भी अव्वल थे मेजर दहिया
मेजर सतीश दहिया पढ़ाई में भी हमेशा अव्वल रहते थे। 5वीं तक की शिक्षा उत्तर प्रदेश के मोदीनगर में हुई थी। यहां उनके पिता फर्नीचर का कार्य करते थे। इसके बाद पिता गांव लौट आए और उनका दाखिला नांगल चौधरी के सरकारी स्कूल में करा दिया। यहां से 12वीं कक्षा पास करने के बाद कोटपूतली कालेज में दाखिला लिया और स्नातक में पूरे बैच को टॉप किया था। स्नातक करने के बाद राजस्थान यूनिवर्सिटी में इंगिलश में एम.ए. में प्रवेश लिया और सेना की तैयारी जारी रखी। एम.ए. करने के तुरंत बाद वर्ष 2008 में आर्मी में लैफ्टिनैंट भर्ती हो गए। अपनी बहादुरी के बल पर ही वे एक साल पहले मेजर बने।

 

पत्नी बोली-जरूर पूरा करूंगी पति का सपना
बेटी को सेना का बड़ी अफसर बनाकर पति का सपना जरूर पूरा करूंगी। यह कहना है शहीद मेजर सतीश दहिया की पत्नी सुजाता का। उन्होंने कहा कि उन्हें अपने पति पर गर्व है। आतंकवादियों को ढेर करते हुए भी उन्होंने साहस दिखाया और भारत मां की लाज बचाई है।

 

मेजर दहिया चाहते थे बेटी सेना में बने अफसर
वह कभी घर में आने-जाने वाले लोगों को ताकने लगती है तो कभी नन्हे कदमों से चहल कदमी करने लगती है। बीच-बीच में परिजन गोदी में उठाते हैं तो घर के पूरे माहौल को एकटक निहारने लगती है लेकिन जैसे ही महिलाओं का रुदन शुरू होता है वह खुद भी रोने लगती है। मेजर सतीश दहिया की अढ़ाई साल की बेटी प्रियांसा को पिता को खोने का अहसास तो नहीं है लेकिन घर में बदले माहौल को देखकर वह उदास है। शहीद मेजर दहिया का परिवार पैतृक गांव नांगल चौधरी से कोई 7 किलोमीटर दूर बनिहाड़ी गांव में ही रहता है। परिजन बताते हैं कि मेजर दहिया का जब भी फोन आता था वह अपनी बिटिया से बात करना नहीं भूलते थे। हालांकि प्रियांसा ज्यादा कुछ तो नहीं समझ पाती है लेकिन पिता के जज्बातों को अहसास करते हुए मात्र पापा शब्द से गागर में सागर भर देती थी। परिजनों के मुताबिक मेजर दहिया बेटी प्रियांसा को आर्मी में अपने से भी ऊंचे ओहदे का अफसर बनाना चाहते थे। अपने इस सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने अभी से तैयारी शुरू कर दी थी। बेटी अभी मात्र अढ़ाई वर्ष की ही है लेकिन उन्होंने बेटी को पढ़ाने के लिए जयपुर के एक प्ले स्कूल में हाल ही में दाखिला करवा दिया था।

 

अंतिम सांस तक दिया अदम्य साहस का परिचय
कश्मीर के हंदवाड़ा में आतंकियों के एक दल के छिपे होने की सूचना पर मंगलवार शाम करीब साढ़े पांच-छह बजे सेना ने ऑप्रेशन शुरू किया था। सेना ने घेराबंदी शुरू की तो आतंकियों ने फायरिंग शुरू कर दी। जवाब में सेना के जवानों ने भी फायरिंग की। इसी दौरान सेना के एक जवान की गोली मोहल्ले के सामान्य नागरिक को लग गई। दोनों तरफ से फायरिंग जारी थी, एक आतंकी ढेर हो चुका था। इसी बीच मोहल्ले के लोगों की भीड़ एकत्रित हो गई। नागरिक को गोली लगने से नाराज भीड़ ने सेना के जवानों पर पथराव शुरू कर दिया। पथराव को झेलते हुए भी जांबाज सैनिकों ने आतंकियों से लोहा लेना जारी रखा। मेजर सतीश दहिया साथियों के साथ आतंकवादियों को ललकारते हुए आगे बढ़ रहे थे। इसी दौरान दो आतंकी फायरिंग करते हुए भागे। इनमें आतंकियों की एक गोली मेजर दहिया के सीने में आ लगी। इसके बावजूद सतीश दहिया बगैर लड़खड़ाए आतंकियों को खदेड़ते हुए साथियों के साथ आगे बढ़ते रहे। भीड़ का हो हल्ला भी जारी था। आतंकियों की 2 गोलियां और मेजर के दहिया के सीने में आ लगी और मेजर दहिया अंतिम सांस तक अदम्य साहस का परिचय देते हुए मातृभूमि के लिए शहीद हो गए। 
 

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