57 प्रतिशत दौलत पर एक फीसदी लोगों का कब्जा:बीरेंद्र सिंह

Edited By Updated: 15 Apr, 2017 09:05 AM

57 percent of wealth occupy one percent of people birender singh

केंद्रीय इस्पात मंत्री बीरेंद्र सिंह डूमरखा ने कहा है कि 132 करोड़ की आबादी वाले मुल्क में जितनी धन-दौलत है

हिसार (सर्वेश कुकरा):केंद्रीय इस्पात मंत्री बीरेंद्र सिंह डूमरखा ने कहा है कि 132 करोड़ की आबादी वाले मुल्क में जितनी धन-दौलत है, इस सारी दौलत का 57 फीसदी हिस्सा तो केवल एक फीसदी लोगों के पास है। उन्होंने कहा कि किसानों की जमीन दर-ब-दर कम होती जा रही है। बीरेंद्र सिंह ने कहा कि ऐसे में क्या नंगी नहाएगी, क्या निचोड़ेगी। वे शुक्रवार को डॉ. बी.आर. अम्बेदकर सभा द्वारा आयोजित अम्बेदकर जयंती समारोह में बतौर मुख्यातिथि बोल रहे थे।

बीरेंद्र सिंह ने वर्तमान हालात पर तंज कसते हुए कहा कि जमीन तो सिर्फ साधु-संत, डेरे वालों या फिर उद्योगपतियों के पास रह गई है। उन्होंने कहा कि किसी का नाम लूंगा तो यह लोग मुझे राजनीति में खड़ा तक नहीं होने देंगे। बीरेंद्र सिंह ने सरकार की कार्यप्रणाली पर भी अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि यह सरकार साधु-संतों की ज्यादा मानती है, हम तो गृहस्थ हैं। 
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ईमानदारी राजनेताओं के मन में हो कि गरीबी के खिलाफ लड़ाई लडऩी हो तो सब संभव है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने अम्बेदकर को दूर रखा था। बावजूद इसके पहले कांग्रेस ने ही चुनावी फायदे के लिए अम्बेदकर का ठेका लिया और बाद में यह ठेका मायावती ने लिया। बीरेंद्र सिंह ने कहा कि ठेका तो ले लो, लेकिन जिस समाज के लिए वे लड़े हैं, उसके लिए काम भी तो करो।

हम शैड्यूल कास्ट में आने को तैयार
बीरेंद्र सिंह ने मंच से नया शगूफा भी छोड़ा। उन्होंने कार्यक्रम में मौजूद अनुसूचित जाति के लोगों से कहा कि अगर कोई आपकी मानता हो तो हम भी (जाट) शैड्यूल कास्ट में आने को तैयार हैं। साथ ही कहा कि हम तो आपके छोटे भाई बनकर रहेंगे। आरक्षण भी नहीं मागेंगे। यह जो माल-पानी औरों के पास है, उसमें हिस्सा चाहिए। इकट्ठे हो गए तो फतेह ही फतेह है फिर कोई चुनाव न आप हारोगे और न हम। उन्होंने कहा कि जाट और जाटव में कोई ज्यादा फर्क नहीं है।

किसान के नोट की कीमत 3 गुना होनी चाहिए
केंद्रीयमंत्री बीरेंद्र सिंह ने मंच से किसानों को भी खुश करने का प्रयास किया। उन्होंने कहा कि किसानों के नोट अलग कर देने चाहिए। किसानों के सरकारी नोट की कीमत 3 रुपए होनी चाहिए। चूंकि वे खेती व गांव में रहकर आजीविका करता है इसलिए उसमें पसीना बहता है। तर्क दिया कि अगर ऐसा किया जाता है तो इससे आर्थिक विषमता में फर्क आएगा। विषमता जब टूटेगी तो गांव की तरक्की होगी।
 

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