कभी चंबल में गूंजती थी दहाड़, 100 कत्ल करने वाला डाकू बना राजयोगी

Edited By Updated: 26 Mar, 2017 12:34 PM

2 million prize money launderers made after 100 murders

कभी चंबल में जिसकी दहाड़ गूंजती थी आज सत्संग में अध्यात्म के शब्द गूंजते हैं। उस समय 556 डाकुओं के सरदार थे और आज हज़ारों अनुयायियों के गुरुजी। कभी 100 कत्ल...

रेवाड़ी (मोहिंदर भारती):कभी चंबल में जिसकी दहाड़ गूंजती थी आज सत्संग में अध्यात्म के शब्द गूंजते हैं। उस समय 556 डाकुओं के सरदार थे और आज हज़ारों अनुयायियों के गुरुजी। कभी 100 कत्ल के आरोप में फांसी तक की सजा हुई थी और अब लोगों को जीवन का मूल्य समझा रहे हैं। भारत सरकार द्वारा दो करोड़ रुपये का इनामी डाकू पंचम सिंह आज राजयोगी भाई पंचम सिंह हैं और लोगों के मन को परिवर्तित करने में अपना जीवन व्यतीत कर रहे है। राजयोगी बनने के बाद राजयोगी देशभर में बीते 45 सालों से अध्यात्म की अलख जगा रहे है। भाई पंचम सिंह फिलहाल रेवाड़ी स्थित प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय में आए हुए हैं और प्रवचन कर रहे हैं।

556 डाकुओं ने किया था समर्पण
चंबल के बीहड़ों में दहशत के रूप में कुख्यात पंचम सिंह जमीनदारों के सताने पर परिवार का बदला लेने के लिए डाकू बने। पंचायत चुनाव के दौरान एक पक्ष का समर्थन करने पर विरोधी गुट के लोगों ने उन्हें व उनके परिवार के लोगों को इतनी बेरहमी से पीटा कि लंबे समय तक अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। इलाज के बाद जब गांव लौटे तो ग्रामीणों पर उत्पीडऩ शुरू हो चुका था। विरोधी गुट हावी था। हर किसी का जीना दुश्वार था। बदला लेने के लिए 12 साथियों को साथ लेकर चंबल के बीहड़ों में कूद पड़े और डाकू बन गए। डाकू माधो सिंह व डाकू भोर सिंह से भी मिले। बदले की भावना में कई हत्याएं भी की। करीब 14 सालों तक आतंक का पर्याय बने रहे। भाई पंचम सिंह बताते हैं कि वे 556 डाकुओं के सरदार बन चुके थे। 1970 में भारत सरकार ने उनपर 2 करोड़ रुपये का इनाम रख दिया। उन्हें पकड़ने के लिए सेना भी भेजी गई लेकिन भेष बदलकर वे किसान बन गए और बच निकले। 1972 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कहने पर लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने उनसे बातचीत की तथा समर्पण के लिए कहा। 

अपनी 8 शर्तों को मानने पर उन्होंने 556 साथियों के साथ समर्पण कर दिया। भोपाल के मूंगावली में खुली जेल बनाई गई तथा वहीं पर कोर्ट भी लगी। 100 हत्याओं के आरोप में उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई। जयप्रकाश नारायण ने राष्ट्रपति के समक्ष अपील की जिससे उनकी सजा उम्रकैद में तब्दील हो सकी। अच्छे व्यवहार के कारण 8 साल बाद ही वर्ष 1980 में उन्हें रिहा कर दिया गया।

अध्यात्म से बदलीं राहें
समर्पण करने के बाद जब पंचम जेल में सजा काट रहे थे, तब प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय की मुख्य संचालिका दादी प्रकाश जेल आईं थीं। उन्हें इंदिरा गांधी ने चुनौती दी थी कि डाकुओं का मन बदल कर दिखाएं। तीन सालों तक जेल में ही प्रवचन हुए और दादी जी की प्रेरणा से पंचम सिंह व उनके अन्य साथी अध्यात्म की ओर चलने लगे। आज पंचम सिंह 95 साल के हैं और राजयोगी बनकर जी रहे हैं। आज वे 500 जेलों, 2 लाख गांवों व देश के तमाम राज्यों में लोगों को अध्यात्म की राह बता चुके हैं।

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