' जो नकल करवाने आएगा,लट्ठ हमारा खाएगा '

Edited By Updated: 11 Mar, 2016 02:35 PM

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महिलाओं के सहयोग को कमतर आंकना बेमानी होगा। हर क्षेत्र में वे अपना योगदान दे रही हैं। यहां तक कि हरियाणा शिक्षा बोर्ड परीक्षाओं

विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के सहयोग को कमतर आंकना बेमानी होगा। किसी भी क्षेत्र को ले लें, वे अपना योगदान दे रही हैं। यहां तक कि हरियाणा शिक्षा बोर्ड परीक्षाओं को नकलरहित आयोजित करवाने में भी उनका सहयेाग शुरू हो चुका है। परीक्षा में खलल डालने वाले अवांछनीय तत्वों को सबक सिखाने के लिए महिलाआं ने मोर्चा संभाल लिया है।

हर वर्ष हरियाणा शिक्षा बोर्ड द्वारा परीक्षाओं का आयोजन करवाना चुनौतियों से भरा काम होता है। नकल रोकने के वह लाख दावे करे,उड़नदस्तों को निरीक्षण के लिए भेज दे,पररीक्षा केंद्रों के इर्द—गिर्द पुलिस तैनात करवा दे।  इसके बावजूद परीक्षा के दौरान नकल धड़ल्ले से होती है। खामी कहां रह जाती है कि बोर्ड के सारे प्रयास फेल जाते हैं, बोर्ड के अलावा स्थानीय स्कूलों के अध्यापक और पुलिस का सहयोग कितना कारगर होता है,इन सारे पहलुओं की समीक्षा करना बहुत जरूरी है।

कहने को बोर्ड की ओर से परीक्षाओं के दौरान अनुचित साधनों के प्रयोग पर रोक लगाने के लिए कड़े कदम उठाए गए,लेकिन पहले दिन से ही नकल करने और करवाने वाले पूरी तरह सक्रिय हो गए। यहां तक कि कुछ परीक्षा केंद्रों पर तैनात पुलिसकर्मी भी इसमें अपना अभूतपूर्व योगदान देते नजर आए। वहां ड्यूटी दे रहे अध्यापक अलग परेशान रहे। उड़नदस्ते जब हरकत में आए तो नकल करने वाले परीक्षार्थी पकड़े गए और कार्रवाई भी हुई। आश्चर्य की बात है कि परीक्षा केंद्रों के आसपास धारा-144 लागू कर दी गई है जबकि बाह्य तत्वों के झुंड परीक्षा केंद्रों की दीवारों को आराम से फांद रहे हैं। इससे व्यापक पैमाने पर की गई व्यवस्था की पोल खुल रही है।

हाल में हुए पंचायतों के चुनाव में उनके प्रतिनिधियों की शैक्षिक योग्यता की शर्त रखे जाने की जमकर आलोचना की गई। जबकि वही शिक्षित पंचायतें काम आ रही हैं। नकल को रोकने के लिए सरकार की अपील पर वे तुरंत आगे आ गईं। उन्होंने परीक्षा केंद्रों में जाकर मोर्चा भी संभाला लिया है। जो सराहनीय तो है ही,यह भी बताता है कि नारी शक्ति के बिना कुछ कार्यों का निर्विध्न संपन्न होना संभव नहीं है। कोई जोर जबरदस्ती पर न उतर आए उन्हें रोकने के लिए महिलाओं ने लट्ठ उठा लिए हैं और परीक्षा केंद्रों पर पहुंच गई हैं। वे यहां भी पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर सहयोग कर रही हैं। 

यहां इससे जुडा एक और उदाहरण देना उपयुक्त रहेगा। जनता के विरोध के बावजूद जब कहीं शराब का ठेका खुल जाता है तो महिलाएं ही उसे बंद करवाने के लिए सबसे पहले लट्ठ उठाती हैं। 

तत्कालीन मुख्यमंत्री बंसीलाल के शासन में भी वे यह उल्लेखनीय कार्य कर चुकी हैं। हरियाणा विकास पार्टी के सुप्रीमो बंसीलाल ने चुनाव जीतते ही 1996 में प्रदेश में पूर्ण शराबबंदी लागू कर दी थी। हालांकि यह पाबंदी ज्यादा समय तक नहीं चल पाई,फिर भी प्रदेश में शराब की दुकानें बंद कर दी गईं। बाहर से शराब लाने पर रोक लग गई। पीने वाले बाज नहीं आए और इसका जुगाड़ कर ही लेते। हरियाणा की सीमाओं पर तस्कर भी सकिय हो गए। महिलाओं ने उस समय भी पंचायतों का सहयोग किया था। जो गांव में शराब पीकर आता वे उसका मुंह काला करके जुलूस निकालती। इससे पीने वालों पर कुछ हद तक अंकुश लग गया था।

कहते हैं कि बच्चे का पहला गुरु उसकी मां होती है। बच्चे को घर में शिक्षित करने के अलावा अब वह उसकी परीक्षा के दौरान भी अपनी मौजूदगी जरूरी समझने लगी है।

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