महिला दिवस: शांति निकेतन को मूर्त रूप देने वाली नारी शक्ति को सलाम

Edited By Updated: 08 Mar, 2017 09:40 AM

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गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के शांति निकेतन को मूर्त रूप देने के संकल्प में सहायता करने वाली महिलाओं का उल्लेख एक पुस्तक में आया है जिसकी योजना छ: वर्ष पहले

गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के शांति निकेतन को मूर्त रूप देने के संकल्प में सहायता करने वाली महिलाओं का उल्लेख एक पुस्तक में आया है जिसकी योजना छ: वर्ष पहले आश्रम के कुछ लोगों ने बनाई थी। ‘शेयरिंग द ड्रीम: रिमार्केबल वूमैन आफ शांति निकेतन’ में विभिन्न लेखकों के 18 लेख शामिल हैं। पुस्तक के सम्पादकों में से एक अमृत सेन बताते हैं, ‘‘यह पुस्तक उन महिलाओं की अनकही कहानी पर प्रकाश डालती है जिन्होंने गुरुदेव के शांति निकेतन के सपने को साकार करने में सहायता की। यह पहली बार है कि विश्व भारती ने उन महिलाओं पर पुस्तक प्रकाशित की है।’’

 

गुरुदेव की अर्धांगिनी मृणालिनी देवी का आश्रम के प्रति समर्पण काफी प्रसिद्ध है परंतु शायद बहुत कम लोगों को पता होगा कि उन्होंने पुरी में अपने पसंदीदा बंगले को बेच देने पर अपनी सहमति दी थी। उन पर लिखे गए एक लेख में लिखा गया है, ‘‘मृणालिनी देवी आश्रम की मां थीं। उन्होंने इस संस्थान के लिए अपने पति को अपने सारे आभूषण दे दिए थे। गुरु देव ने पुरी का एक बंगला भी बेच दिया था जो दोनों के लिए एक बढिय़ा आरामगाह था।’’ पुस्तक में वर्ण्ति अन्य महिलाओं में अमर्त्य सेन की माता अमिता सेन तथा नानी किरण बाला सेन भी शामिल हैं। 

 

अमिता सेन, जिन्हें आश्रम में प्यार में ‘खुकू’ भी कहते थे, गुरुदेव की पसंदीदा गायिका थीं। वह उनके संगीत की मुख्य संरक्षक थीं। पुस्तक के अनुसार गुरुदेव की इच्छा थी कि वह संगीत भवन की प्रमुख बनें। कहा जाता है कि गुरुदेव ने अपना गीत ‘आमी तोमार सोंगे बेदेछी अमार प्राण सुरेर बंधाने’ उन्हें ही समर्पित किया था। अमर्त्य सेन की नानी किरणबाला को भी पुस्तक में सम्माननीय स्थान दिया गया। पुस्तक के एक अन्य संपादक ताप्ती मुखोपाध्याय के अनुसार बहुत कम लोग यह जानते हैं कि किरणबाला जिन्हें शांतिनिकेतन में ठांडी कहते थे, एक निपुण दाई (मिडवाइफ) थीं। उन पर लिखे लेख में कहा गया है कि शांति निकेतन के अधिकतर बच्चे उन्हीं की देख-रेख में पैदा हुए थे। इस पुस्तक में अमेरिका की ग्रेचेन ग्रीन का भी उल्लेख है जो कुछ समय के लिए समुदाय की ‘माई’ रही थीं। उन्होंने ग्रामीण महिलाओं के साथ काम किया, गुरुदेव की सचिव भी रहीं और श्री निकेतन पर फिल्म बनाने वाली वह पहली महिला थीं।

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